सोमवार, 9 अक्टूबर 2017

अपना अधिकार का लड़ाई

अपनों का चिंता फिकिर सब कोई का होता है |यह स्वभाबिक है , चाहे ब्यातिगत हो चाहे परिबारिक ,सामाजिक,जाति ,भाषा-सांस्कृतिक,आर्थिक,शैक्षणिक इत्यादि का सुख-सुबिधा,सर्वांगीन विकास तथा उत्थान  सब कोई चाहता है | और इस सबका संगविधानिक अधिकार तथा होक्दार भी है | हमारे देश में भी बिभिन्न अधिकार को लेकर ब्रिटिश भारत से लेकरके अब तक बिभिन्न समूह,जाति तथा संप्रदाय राजनितिक पार्टी तो और बड़ा इसु लेके आवाज उठाते रहे हैं या उठा रहे हैं और पता नहीं यह सब कब ख़तम होगा | झारखण्ड में भी पिछड़े जाति वर्ग का बड़ी आबादी आरक्षण के  हक़दार  हैं, को लेकर बड़ी जोर-सौर से घर-घर जाकर आवाज उठा रहे हैं, चिल्ला रहे हैं | यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है और यह तो सही बात है, की झारखण्ड की पिछड़ी जाति वर्ग के बड़ी आबादी सामजिक, आर्थिक तथा शैक्षणिक मोरचे पर पिछड़ा हुआ है | पर आज आजसू पार्टी का चैतन्य हुआ है,जब से झारखण्ड राज्य बना है तब से लेकर आज तक सरकार में योगदान रहा है,पर आज क्यों आरक्षण को लेकर इतना चिंता होरही है की अपना अधिकार तथा हकदारी  के लिए घर-घर जाकर ढिंढोरा पीठ रही है   जबाब में बोल रही की पहले का सरकार में बड़ी भीड़ था, चिल्लाने से कोन सुनेगा इसीलिए नहीं चिल्लारहे थे | पर अभी एक ही परिवार के दोनों भाई तिन साल से सरकार चलारहे हैं | लेकिन क्या करें छोटा भाई जो सतेला है, बाप्पा भी जोन घर में नहीं हैं और बड़े भाई का बाड़ा परिवार का बाड़ा ही बोलबाला है इसीलिए छोटा भाई का परिवार का एक भी नहीं सुन रहे हैं, इसीलिए घर-घर जाकर अपना हक़ का ढिंढोरा पीठ रहे हैं और उधर केंद्र में भी दादू का का में ताला पड़ गया है | लोगों के सामने चिल्ला-चिल्ला के नाटक करने से कोई फ़ायदा नहीं | अगर सही में अधिकार और हक़ चाहिए तो बाड़ा भाई और दादू को मनाइए न, हमलोग आपके साथ तो है हीं|| हमलोग तो लड़ाई करने का पावर देदिए हैं | लड़के अपना सारे अधिकार,अपना हक़ छीन लीजिये | अगर घर से निकल देगा उसका डर से कुछ नहीं बोलेंगे और हमलोगों का सामने आकार चिल्लायेंगे तो कुछ प्राप्त नहीं होगा |                                                                                  आज बर्तमान में इस सन्दर्भ में हमलोग का देश तथा दुनिया के लोग जातिवादी का भेद-भाव,उंच-नीच,बाड़ा-छोटा,का भावना,घृणा,इर्षा एक-दुसरे के ऊपर प्रकट करके झगड़ते रहते हैं |अरे भाई मत लड़ हम सब एक ही परिवार के संतान-संतति हैं,सब का खून एक ही तो है | क्यों की हम सब पृथिवी-सृष्टिकर्ता, पृथिवीद्रष्टा,प्रिथिवित्राता,परम पिता प्रजापति, पृथिवी पुत्र, कुशल कृषक, मानव जाति का आदि पुरुष,परम पिता कुर्म-कश्यप ही संसार के सभी मानव जाति तथा सारी प्रजाएँ उसी से उत्पन्न हुई है | इसीलिए संसार के सभी मानव जाति उन्ही के वंशज तथा संतान-संतति हैं | इसीलिए संसार की सभी जातियां कुर्म-कश्यप की ही संतति हैं |                                                                                                                                                              अपनों का चिंता फिकिर सब कोई का होता है,| यह स्वभाबिक है , चाहे व्येक्तिगत हो चाहे पारिवारिक,सामाजिक, पारम्परिक पेशा-कर्म , भाषा-सांस्कृति, आर्थिक, शैक्षणिक आदि का विकास उत्थान सब कोई चाहता है |यह सब का सांविधानिक अधिकार तथा हक़ भी है | बाड़ा ही गर्व और गौरव की बात है कि हमारे भारतवर्ष के चरों कोना में बड़ी संख्या में कुर्मी कृषक जाति के लोग पाए जाते हैं | उन्होंने अपने कुल तथा आदि पूर्वपुरुष परमपिता कुर्म-कश्यप को नहीं भूले हैं, उनके सारे गुण-कर्म और नाम के साथ अपने नाम के साथ सदा-सर्वदा के लिए अमिट रूप से जुड़े हुए हैं | उन्होंने अपने आपको कुर्मी, कश्यप कुर्म वंशी या कश्यप गोत्री कहती हैं |वैसे तो संसार की सभी जातियां कुर्म-कश्यप की ही संतति हैं, किन्तु उनमे से अधिकांश लोग अपने आदि पुरुष को ही भूल गए हैं |यह कुर्मी जाति प्रजा पलक अन्नदाता हैं | यह अपने पूर्वज कुशल कृषक, प्रजापति, महर्षि कुर्म-कश्यप तथा महान कृषक देवराज इन्द्र की तरह धरती तथा जमीन को सींच कर बिभिन्य प्रकार के खाद्यान्न सृजन तथा उत्पादन कर के समस्त जीवों का भरण-पोषण तथा पालन करते हैं |सब को सामान रूप से देखते हैं ,सब को खेयाल ,सभी को लेकर चलते हैं , ये अपना कर्त्यव्य अतिसरलाता और इमानदार के साथ निभाते हैं | इसीलिए ये प्रजापति, रजा तथा शासक भी कहलाते हैं |                                                                                                                                   तो यहाँ मैं खास करके महान कुर्मी कृषक संतान जातिबादीराजनीति करनेवाले नेतायों से कहना चाहूँगा की ब्रिटिश भारत से स्वाधीन भारत के शुरुयात में सरदार बल्लभ भाई पटेल से लेकर आज के फालतू का चिल्लानेवाले कुर्मी नेता लोग आदिम तथा आदि निवासी कुर्मी कृषक जाति का जन्मजात संबिधानिक अधिकार आज तक नहीं दिलाने सके हैं | और इससे भी बड़ी दू:ख की बात यह है की आदि पुरुष महान कुर्मी कृषक, प्रजापति कुर्म-कश्यप की संतान-संतति, धरती पुत्र , अन्नदाता कुर्मी जाति का राष्ट्रीय जाति का रूप में पहचान नहीं बना पाई है | ये नेता लोग आपना जाति घर परिवार का मान-सम्मान मर्यादा दिलाने नहीं सकते हैं तो क्या फालतू का जतिबादी राजनीति करते हैं | जब की यह कुर्मी जाति बड़ी संख्या में पुरे भारतवर्ष में आदि से लेकर आज तक बहुती महत्यपूर्ण भूमिका निभाते आरही है | जो श्रम की महत्या, स्वाभिमान, उदारता से सभी छाप छोड़ते हैं | ये जान लीजिये की कुर्मी समाज सबको देते ही हैं, लेते कुछ भी नहीं | ये सम्पूर्ण देश में समाज के अन्नदाता हैं|यह प्रकृत्या, कर्मठ, इमानदार, परोपकार करने में उद्यत, सबों के हित चिन्तक आदर्शबादी होते हैं | समाज का सेवा में रत, समाज के निचले इस्तर से लेकर शिखर तक अपनी छाप छोड़ते हैं | फिर भी इस जाति को अपना सांबिधानिक अधिकार से बंचित रखा गया है |                                                                                                                अज वर्त्तमान में देश के बिभिन्य जाति के लोग अपना जतिबादी राजनीति कारते हैं, सब अपना अधिकार को लेकर आवाज उठाते रहते हैं | यह स्वभाबिक है | उसी तरह कुर्मी जाति भी देश के बिभिन्य हिस्यों से बिभिन्य समय में अपना अधिकार को लेकर आवाज उठाते रहते हैं| ||                                                                               तो बिभिन्न अधिकारों को लेकर जो माँग है, ये शिलशिला चलता आरहा है और पता नहीं कब तक चलता रहेगा | पर हम सब एक ही आदि पुरुष परम पिता के संतति है, एक ही परिवार के संतान हैं | भाई भाई में ये सब भेद-भाव थोडा बहुत होता ही रहेगा | फिर भी हमारे भारतवर्ष आदि परम पुरुष, आदि गुरु सृष्टि द्रष्टा, परम पिता तथा मुनि- ऋषिओं का देश है | यहाँ  बिभिन्य जाति, भाषा-संकृति, खान-पान , बिभिन्य परिधान रहते हुए भी हम सब एक हैं | फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी |इसीलिए तो भारत महान है | कवी गुरु रबिन्द्रनाथ टेगर के भाषा में --- " नाना भाषा नाना मत नाना परिधान विविधेर  माझे देख मिलन महान "| नमस्कार !                                                       मेरे यह पोस्ट जरुर पढ़ें और अच्छा लगे तो कोमेंट करना न भूले | धन्यवाद !                         

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